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शिक्षा से नहीं मिलता रोज़गार -हर्ष सरोहा

 हर्ष सरोहा

शिक्षा को हम सीधे रोजगार से जोड़कर देखते हैं शायद इसी चक्कर में पड़कर अधिकांश अभिभावक अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम में भेजते हैं, जहां एक्स्ट्रा एक्टिविटीज के नाम पर अनाप शनाप लूट मची है। बड़े बड़े भवन दिखाकर लाखों रुपया फीस वसूली चलती है। माँ बाप भी इस अंधी दौड़ में खुद के बच्चों को छोड़ देते हैं। जबकि शिक्षा बच्चों का मानसिक विकास करती है, शिक्षा रोजगार के लिए नहीं होती। रोजगार तो शिक्षा के बाद विकसित हुई सोच समझ और उसके बाद बच्चों द्वारा की गई ट्रेनिंग से आता है।

लेकिन हमें लगता है कि रोजगार शिक्षा से आता है। कोई भी रोजगार उठाकर देख लीजिए वह कभी भी शिक्षा से नहीं हासिल हुआ, ट्रेनिंग से हासिल होता है, मेडिकल की ट्रेनिंग, इंजीनियरिंग की ट्रेनिंग, आर्मी की ट्रेनिंग, डीएम एसडीएम आईपीएस आईएएस से लेकर एक सामान्य मजदूर तक सबको ट्रेनिंग की जरूरत पड़ती है रोजगार के लिए। शिक्षा तो बस ट्रेनिंग को आसान कर देती है।।

लेकिन मां बाप को लगता है कि शिक्षा से रोजगार आता है, जबकि सच्चाई यह है कि शिक्षा से बच्चों का मानसिक विकास होता है, उनमें समझ पैदा होती है उनकी एक सोच बनती है। इस सोच के जरिये वह अपने लिए ट्रेनिंग का चुनाव करता है और फिर मिलता है रोजगार।

मगर जब शुरूवात में ही बच्चों को निजी  स्कूल में शिक्षा से ज्यादा ट्रेनिंग पर फोकस करवाया जाएगा तो उसकी सोच समाझ का विकास कैसे होगा।


और फिर हमें लगता है कि शिक्षा व्यवस्था ही गलत है। शिक्षक जब कहे कि बेटा सभी बस पढ़ लो, आगे क्या करना है वह तुम्हें खुद पता चल जाएगा तो वह शिक्षक ब्च्चों को सही राह दिखा रहा है। वहीं जब शिक्षक कहे कि बच्चों यह नहीं करोगे तो झाड़ू लगाओगे, वह नहीं करोगे तो बकरी चराओगे, ऐसे कैसे डॉक्टर बनोगे, ऐसे कैसे इंजीनियरिंग करोगे तो समझ लो शिक्षक बच्चे पर अनावश्यक प्रेशर डालकर उसे गलत राह पर ले जा रहा है। अरे ब्च्चों को सिर्फ पढ़ाओ न, उनका मानसिक विकास करो, उनमें समझ और सोच पैदा करो। वह बच्चा वख्त आने पर खुद आपको बता देगा कि उसने क्या ट्रेनिंग लेनी है।


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