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चिता में जाने वाला 72 साल का ईश वलेचा--गुलाम नागरिको -स्वतंत्र सत्तासीनों-पढो आंखें खुल जायेगी

72 साल का ईश वलेचा देश के सत्तानशीनों से क्यूं नाराज हैं, नागरिकों से क्यूं नाराज हैं,वो आपको क्यूं बता रहा है आप कब जागोगे 

Edit विरेन्द्र चौधरी 

NATIONAL NEWS.  मैं नहीं जानता कि देश के तथाकथित बुद्धिजीवी, मोदी के इस ब्यान से सहमत हैं या नहीं कि 15 अगस्त 1947 से पूर्व देश के नागरिक गुलाम थे और १५ अगस्त १९४७ के पश्चात नहीं ? मैं मोदी या मोदी के इस ब्यान से तनिक भी सहमति रखने वालों से आंशिक रुप से सहमत हुं कि देश के नागरिक १५ अगस्त १९४७ से पूर्व गुलाम थे । इस ब्यान -आशय: से नहीं कि देश के नागरिक ( आमजन ) १५ अगस्त १९४७ के बाद गुलाम नहीं । देश के नागरिक १५ अगस्त १९४७ से पूर्व भी तुलनात्मक सक्षम  सत्तासीनो के अधीनस्थ र्कायरत गुलाम, नागरिकों को न केवल गुलाम समझते थे ब्लकि नागरिकों का शोषण, उत्पीडन एवं दोहन आदि भी करते थे । ठीक वैसी ही प्रथा आज अमृत महोत्सव वर्ष में भी न केवल नागरिको गुलामों के साथ तुलनात्मक सक्षम गुलामो द्वारा गुलामो की तरह ही व्यवहार एवं आचरण किया जाता है ब्लकि पहले की ही तरह गुलामो (तथाकथित जनसेवकों ) द्वारा गुलामो ( आम नागरिकों ) का शोषण, उत्पीड़न एवं दोहन आदि किया जाता है और भविष्य में भी आम नागरिको को देश के तीनों अंगो के तुलनात्मक सक्षम गुलाम सत्तासीनो के अधीनस्थ र्कायरत गुलामो द्वारा न केवल गुलामी की कभी न टूटने वाली जंजीरों में बांधकर रखने का नंगा नाच/ताण्डव जारी रहेगा बल्कि बिना किसी रोक-टोक, बिना किसी बाधा एवं व्यवधान आदि के शोषण, उत्पीड़न एवं दोहन भी जारी रहेगा । ग्रेट बिटेन के सवोच्य पद पर पदासीन विसेन्ट र्चचिल नहीं बल्कि भविष्यवक्ता द्वारा देश एवं देश के कारकूनों के बारे में की गयी भविष्यवाणी के क्रम मैं भी भविष्यवाणी करता हुं कि प्रकृति प्रदत्त वंशानुगत गुणों ( वास्तव में अवगुणों ) से स्वसुज्जित सनातन एवं इस्लाम धर्म दोनों की शासन व्यवस्था में गुलाम भी रहेंगे और गुलाम बनाने वाले गुलाम भी । ऐसे ही गुलामो से येन-केन- प्रकेण एवं परोक्ष-अपरोक्ष दोनों रूप। से जबरन तथा भिन्न भिन्न नामों आदि से वसूले गये धन के बल पर मोज- मस्ती, ऐश एवं अय्याशी आदि भी करते रहेंगे । जो काले अंग्रेज आज तथाकथित अमृत महोत्सव वर्ष में भी गला फाड़- फाड़ कर ऐसा कहते हैं और यह कहते नहीं कि  थकते कि मृत संविधान की दृष्टि में सब बराबर हैं, कानून अपना काम करेगा, चुनाव आयोग, न्यायपालिका स्वतंत्र एवं निष्पक्ष संस्थान हैं,  हिंसा त्मक आन्दोलन नहीं किया जाना चाहिए, अहिंसात्मक आन्दोलन करना आन्दोलनकर्ताओं का संवैधानिक अधिकार है, ई०डी०, सी० बी० आई० आदि जैसे अनेकों अनेक संस्थान के कारकून बिना प्रभावित किए, बिना दबाव एवं बिना भेदभाव काम करते हैं, वें न केवल वंशानुगत मुर्ख-संवेदनहीन नागरिकों को और अधिक मुर्ख -संवेदनहीन ब्लकि लाखों लाख गुलामो / जनसेवकों के माध्यम से येन-केन-प्रकेण गुलाम ही बनाए रखने का निरन्तर नंगा खेल खेला जाता रहा है और नंगा ताण्डव किया जाता रहेगा । यदि यह असत्य है तो Forces, दफा १४४, INTERNET बन्द किया जाना आदि जैसी तानाशाही र्कायवाहीयों का उपयोग ( दुरूपयोग ) किया जाता है । काले अंग्रेजो को भी आज, कल के तथाकथित अंहिसा के प्रतीक गांधी की तो गुन्जायिश को स्वीकार किए जाने की बातें भर की जाती हैं । बातें तो भगतसिंह, सुभाष चन्द्र बोस, चन्द्रशैखर आजाद, मदन लाल धीगड़ा, राजगुरु, अश्फाक उल्ला, दुर्गा भाभी, रानी लक्ष्मीबाई, छत्रपति शिवाजी एवं महाराणा प्रताप जैसे हिंसा करने वालों की करते हैं लेकिन ऐसे महान शहीदों के रास्तों पर चलने वाले अपराधी, अराजक, गुण्डे एवं आंतकी है । आक्रोश ही नहीं ब्लकि घृणा होती है कि देश के तीनों अंगों के तुलनात्मक सक्षम काले गुलाम, देश-प्रदेश की जैलो में दोनों तरह के गुलाम पाये जाते हैं । एक तरह के गुलाम हैं जो सक्षम गुलामो के वृहदहस्त, सरक्षंण एवं छत्रछाया में करोड़ों करोड़ रूपये की काली कमाई के रूप में प्रतिमाह कमाते हैं, निरूद्ब गुलामो के मान-सम्मान की बात तो छोड़िये इनका शारीरक, आर्थिक एवं मानसिक दोहन, यातना, कष्ट आदि ( उस काल/युग से किया जा सकता है जिस काल में गुलामों द्वारा गुलामो की मंडियों  में बेचा जाता था । यदि देश के तीनों अंगों के गुलामों को  इस कटु वास्तविकता एवं सत्यता से अनभिज्ञ हैं । देश का एक भी गुलाम ऐसी अनभिज्ञता को कभी भी स्वीकार नहीं करेगा । देश के तीनों अंगों तुलनात्मक सक्षम गुलामो को इस कटु वास्तविकता एवं सच्चाई का पता है ।  हालांकि मानता हुं.कि थोड़ा बहुत भोंकने की कतिपय आजादी जरूर है । काले अंग्रेज जंहा एक ओर स्वयं अपनी असफलता स्वीकारते हुए कहते हैं कि ऐयर लाईन, रेलवे, बीएसएन एल,/एमटीएनएल, आईडीपीएल, यूपीडीएल जैसे अनेकों अनेक शासकीय /अधशाशकीय संस्थानो को चलाना/ बनाए रखना हमारा काम नहीं तो इस पर क्यौकर विश्वास किया जा सकता है कि काले अंग्रेज शासन-प्रशासन व्यवस्था का संचालन ठीक प्रकार से   करने में कैसे योग्य एवं निपुण हैं । काले अंग्रेज शासन-प्रशासन सहित फोर्सिज आदि को अपने ही पास क्योंकर रखना चाहते हैं । समझना अत्यन्त सरल है ।


Note:- Please let me know the utility of the Legislative. Why should bear the burdon a huge expenditure by the public.

लेख में सच्चाई है तो आगे शेयर करें विरेन्द्र चौधरी 


                

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