मौलाना साहब तकरीर कर रहे थे
"नमाज़ हज़ारों बुराईयों से बचाती है और नेक राह पर चलाती है और आपको अच्छा इंसान बनाती है"
मैंने पूछा "तो आपके हिसाब से बग़दादी, लादेन और मुल्ला उमर, जिनकी शायद ही कोई नमाज़ छूटी हो सभी नेक थे, सही रास्ते पर चल रहे थे और अच्छे इंसान थे?"
कहने लगे "तो आपके हिसाब से नमाज़ कुछ नहीं करती है? इंसान नमाज़ न पढ़े? हम ये न कहें तो क्या कहें?"
मैंने कहा "मैंने ये तो नहीं कहा कि आप नमाज़ छोड़ दें.. मेरा सिर्फ ये कहना है कि आपकी नमाज़ की परिभाषा ग़लत है और अपने बच्चों को सही परिभाषा बताईये"
कहने लगे "कैसे गलत है हमारी परिभाषा?"
मैंने कहा "क्यूंकि जो परिभाषा आपने नमाज़ की बतायी है वो उस पर बिलकुल भी फिट नहीं बैठती है.. लोग मज़हब की वजह से चुप रह जाएंगे मगर उनका दिल इस परिभाषा को कभी स्वीकार नहीं करता है.. नमाज़ आपको बुराई से बचाने के लिए नहीं है.. नमाज़ आपको अपने रब से जोड़ने के लिए होती है.. उसे पढ़कर न तो आप नेक बनते हैं और न अच्छे, उसे पढ़कर आप भीतर से जुड़ते हैं उससे जिसे आप ख़ुदा या अल्लाह कहते हैं"
कहने लगे "अगर सबसे ऐसे बोल दिया जाय कि नमाज़ से ऐसे कोई फायदा नहीं है तो फिर पढ़ेगा कौन?
"मैंने कहा "ख़ुदा से जुड़ना आपको किसी फायदे से कम लगता है क्या? और किस तरह के फायदे की बात आप सोचते हैं नमाज़ से?"
कहने लगे "फिर बुराईयों से कौन बचाता है हमे.. अगर नमाज़ नहीं बचाती है तो?"
"मैंने कहा "बुराईयों से आपको आपकी समझ बचाती है.. आपकी तरबियत (संस्कार) बचाती है.. बुराईयों से तो हर धर्म के लोग बचते हैं और नास्तिक भी बचते हैं.. तो क्या वो नमाज़ पढ़के बच रहे हैं? अपने कर्मकांडों की ऐसी परिभाषा मत बनाइये जिसमे अपनी नस्लें उलझ कर रह जाएँ.. और सच्चाई से दूर होती जाएँ.. जो जैसा है उसे वैसे बोलना सीखिये क्यूंकि सच्चाई आधा ईमान है"
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