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जेल से रिहाई के पीछे का कड़वा सच--मुस्लिम उत्पीड़न की आड़ में चल रही है

 जेल से रिहाई के पीछे का कड़वा सच--मुस्लिम उत्पीड़न की आड़ में चल रही है मौकापरस्त सियासतदाओं की दुकानें

एडवोकेट इन्तखाब आजाद

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सहारनपुर। पैगंबर मौहम्मद साहब के संबंध में भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा की आपत्तिजनक टिप्पणी के विरोध स्वरूप हुए धरना प्रदर्शन में पुलिसिया जुल्म और नेताओं की लाचारी तथा बेबसी के चलते गिरफ्त में आए युवकों की रिहाई को लेकर आज हर कोई तथाकथित मुस्लिम नेता खुद अपनी पीठ थपथपा रहा है जबकि हकीकत इससे परे है, क्योंकि यहां हुए धरना प्रदर्शन में ना तो लूटपाट हुई, ना पत्थरबाजी, ना किसी पर हमला हुआ, ना ही कोई तोड़फोड़, ना कोई जख्मी और ना ही किसी तरह की कोई आगजनी, हॉ अपने सियासी आकाओं को खुश करने की खातिर पुलिस प्रशासन के निचले कर्मचारियों ने अपने आला  अफसरों को खुश करने की खातिर जमकर हवालात मे बंद बेगुनाहों पर लाठियाँ भॉजी।

■ यहां दो मौजूदा विधायक, एक एमएलसी, एक सांसद, पूर्व विधायक और एक ऐसा पूर्व विधायक जो खुद को पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तथाकथित स्वयंभू कयादत होने का रोना रोता है ये यह सब मिलकर भी किसी मजलूम को इंसाफ नहीं दिला पाए बल्कि यह खुद अपनी पीठ थपथपाते हुए आपस में लड़ते-झगडते और फोटो सेशन करते- करवाते रहें। सलाखों के पीछे पहुंचे जिन बेगुनाहों की रिहाई पर यह  तथाकथित मुस्लिम नेता अपनी पीठ थपथपा रहे हैं, उनकी रिहाई में निष्पक्ष पत्रकारिता, तत्कालीन पुलिस कप्तान और जिलाधिकारी का वो वादा कि गुनाहगार को छोड़ेंगे नहीं और बेगुनाह को छेड़ेंगे नहीं के साथ शहर काजी नदीम अख्तर, सिविल कोर्ट सहारनपुर के अधिवक्ता गण(हिन्दू मुस्लिम), जमीअत उलमा ए हिंद के नेता मौलवी फरीद मजाहिरी,मौलाना अब्दुल मालिक मुगैसी,हाफिज सईद अहमद, सर्वदलीय संघर्ष समिति के अध्यक्ष पूर्व विधायक वीरेंद्र ठाकुर, पूर्व विधायक सुरेंद्र कपिल, वरिष्ठ पत्रकार एवं कांग्रेस  नेता महेंद्र तनेजा, वरिष्ठ पत्रकार जावेद साबरी, पूर्व जिला पंचायत चेयरमैन माजिद अली,मौलाना अजीजउल्ला नदवी,वरिष्ठ सपा नेता मौहम्मद हुसैन जिलानी सहित शहर के धार्मिक और सामाजिक लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका है। 

■जब इस पूरे प्रकरण  के दौरान हमारे यह जनप्रतिनिधि और तथाकथित मुस्लिम नेता आपस में लड़ झगड़ रहे थे, तब शहर के कुछ जुझारू, क्रांतिकारी लोग बिना शोर शराबा किए गली मौहल्लों में घूम घूम कर सीसीटीवी फुटेज और पीड़ित बेगुनाहों को इंसाफ दिलाने की खातिर एक एक सुबूत इकट्ठा कर रहे थे, ताकि इन सुबूतों को पुलिस प्रशासन द्वारा नियुक्त विवेचना अधिकारी तथा उनके माध्यम से अदालत में पेश किया और कराया जा सके और इस प्रक्रिया मे रिजल्ट भी आया, कि आज दर्जनभर से ज्यादा बेगुनाहों को बाइज्जत अदालत ने रिहा किया, लेकिन मेयर का चुनाव सिर पर खड़ा है, इसलिए हमारे जनप्रतिनिधि और यह तथाकथित मुस्लिम सियासतदां इन मजलूमों पर हुए जुल्म की आड़ में अपनी नेतागिरी चमकाने से बाज नहीं आ रहे हैं और उनके जख्मों पर नमक छिड़कते हुए खुद अपनी पीठ थपथपा रहे हैं।

■ इन तथाकथित मुस्लिम सियासतदाओं की नियत और ताकत पर बडा सवाल यह खड़ा होता है कि 10 जून को हुए इस प्रदर्शन के दौरान इन पीडित युवकों का सिर्फ इतना कुसूर था, कि यह नासमझी में, बिना नेतृत्व के दफा 144 का उल्लंघन कर प्रदर्शन में शामिल हुए। जबकि इस दौरान ना फायरिंग हुई, ना लूटपाट हुई, ना तोड़फोड़ हुई, ना आगजनी हुई, ना पत्थरबाजी हुई और ना ही कोई जख्मी हुआ। यह बात मैं एडवोकेट इन्तखाब आजाद नहीं बल्कि तत्कालीन पुलिस कप्तान आकाश तोमर और  जिलाधिकारी अखिलेश सिंह ने मीडिया को बाइट मे खुद कहीं। अब हम यहां इन दो विधायकों, एक एमएलसी, एक सांसद, एक पूर्व विधायक और एक ऐसे पूर्व विधायक जो खुद को पश्चिमी उत्तर प्रदेश की तथाकथित स्वयंभू कयादत होने का रोना रोते हैं। इनको जनहितैषी, काबिल, ईमानदार, समझदार और  ताकतवर,तब मानते,कि जब यह स्थानीय पुलिस प्रशासन के आला अफसरों को कहते, कि पकड़े गए सभी युवकों का गुनाह सिर्फ इतना है, कि इन्होंने दफा 144 का उल्लंघन किया है,इसी आरोप मे आप इनपर मुकदमा दर्ज करें, लेकिन आपने संगीन धाराओं में इन पर मुकदमे दर्ज कर इनका भविष्य चौपट कर दिया और आपने इतनी बर्बरता पूर्वक इनपर जानवरों की तरह लाठीचार्ज कैसे किया---? मगर इतनी हिम्मत इन जनप्रतिनिधियों में नहीं थी। सभी लोग पकड़े गए, छिताई पिटाई हुई, मुकदमे दर्ज हुए, जेलों में बंद हैं, वकील मुकदमे लड़ रहे हैं, और घरवाले जमानते ले रहे हैं। अब खुद सोचो!कि इसमें इन जनप्रतिनिधियों और तथाकथित स्वयंभू कयादत की क्या भूमिका है--? सिर्फ अपनी पीठ खुद थपथपा कर वाहवाही लूट कर मेयर के चुनाव में जनमत संग्रह करने का षड्यंत्र मात्र है। हां इतना जरूर है,कि विधायक आशु मलिक जरूर पकड़े गए कुछ युवकों को थानों से छुड़ाकर अपने साथ लाए और उनके परिजनों को सौंपा।

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