फसल सुरक्षा के लिए नीम का वृक्ष महत्वपूर्ण--किसानों के लिए जानना जरूरी-
विरेन्द्र चौधरी
सहारनपुर। आज फसलों को नुक्सान पहुंचाने वाले कीड़ों, मकड़ी,सुंडी को खत्म करने के लिए ज्हरीली दवाईयां इस्तेमाल की जाती है,इससे मानव जीवन में नयी नयी बिमारियां पैदा हो रही है,जो मानव व पशु-पक्षियों के जीवन पर घातक असर डाल रही है। ऐसी ज्हरीली दवाईयों से बचने के लिए किसानों को कुदरती संसाधनों का इस्तेमाल करना चाहिए। आज जिला कृषि रक्षा अधिकारी शिप्रा ने प्राकृतिक संसाधनों की जानकारी देते हुए बताया कि किसान किस तरह फसलों की सुरक्षा के लिए उनका उपयोग कर सकते हैं।
भारतीय संस्कृति में नीम वृक्ष का स्थान महत्वपूर्ण है। फसल सुरक्षा में इसके विभिन्न अंगों से बनी खाद फसलों के लिए लाभकारी है तथा फसलों को कीटों से बचाने के लिए काम आता है। नीम के अंग जैसे फल, फूल, पत्ती, छाल, जड व इनसे तैयार नीम तेल व खली का प्रयोग कर किसान अपनी फसलों की सुरक्षा कर सकते है। इसे किसानों का मित्र भी कहा जाता है।जिला कृषि रक्षा अधिकारी शिप्रा ने जानकारी देते हुए बताया कि इस समय पेड से पककर गिर रही निमौली तीन माह तक रख दें तो उसमें से अच्छा तेल निकलेगा। आठ से दस माह पुरानी निमौली को मोटा पीसकर सूती कपडे में पोटली बना लेते है। पोटली को रातभर पानी में डुबोकर रखते है। सुबह उसका रस निकालकर खेत में छिडकाव करने से हानिकारक कीटों से फसल का बचाव होता है। यह सुंडियों माहू, थ्रिप्स व जैसिड कीट प्रबन्धन में लाभकारी सिद्ध हुआ है। नीम के साथ साबुन मिलाकर छिडकाव करने से वह पौधे में अच्छी तरह चिपक जाता है।नीम की हरी पत्तियों को रात में भिगोकर सुबह महीन पीसकर पानी में घोल बनाकर खेत में छिडकाव करने से फसलों में टिड्डे, मकडी, सूंडियां आदि कीट नहीं लगते। मादा पतंगे और हानिकारक प्रौढ कीट इसकी दुर्गंध से खेत के नजदीक तक नहीं आते। नीम की सूखी पत्ती एक किलोग्राम प्रति कुन्तल अन्न में मिलाकर भंडारण करने से कीडे, घुन आदि नहीं लगते। तेल स्वच्छ पानी में मिलाकर छिडकाव करने से फसलों को चूसने वाले कीटों से निजात मिलती है। इस व्यापारी को तमंचे की नोंक पर लूटा - सुनिए दर्द
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