सियासी हाशिए पर पड़ा सिसक रहा मुस्लिम गाडा समाज,इसके लिए जिम्मेदार कौन--?
एडवोकेट इन्तखाब आजाद
बामसेफ के राष्ट्रीय अध्यक्ष वामन मेश्राम कहते हैं, कि मांगने से सिर्फ भीख मिलती हैं अधिकार नहीं। सम्मान और स्वाभिमान की खातिर अधिकार मांगे नहीं बल्कि संघर्ष करके छीने जाते हैं, तब आगे बढ़ा जाता है।
सहारनपुर【उत्तर प्रदेश】 बहुजन नायक साहब कांशीराम ने कहा था कि जिसकी जितनी संख्या भारी, उसकी सत्ता मे उतनी हिस्सेदारी, लेकिन भारत के बहुजन मूलनिवासी समाज का एक बडा वर्ग यानि मुस्लिम गाडा समाज बहुजन नायक साहब कांशीराम की इस थ्योरी के उलट सियासी हाशिए पर पड़ा सिसक और तड़प रहा है। अब सवाल ये उठता है कि सियासी तौर पर मुस्लिम गाडा समाज -शून्य पर क्यों पड़ा और सिसक रहा है--? जबकि इस मुस्लिम गाडा समाज का अपना एक गौरवशाली इतिहास रहा है, इस गाडा समाज ने जहां सियासत में अपने कीर्तिमान स्थापित करके बड़े बड़े लीडर पैदा किए, वही इस मुस्लिम गाडा समाज का जमीदारा होने के चलते यह शिक्षा के क्षेत्र में भी, चाहे वो दीन की शिक्षा हो या फिर दुनिया की,उसमे सर्वोपरि स्थान रखता है और इस मुस्लिम गाड़ा समाज की सियासी, समाजी और मजहबी खिदमात के सिलसिले में, मैं एडवोकेट इन्तखाब आजाद आपको बारी-बारी से ताअर्रफुफ(परिचय) कराऊंगा। मगर फिलहाल सबसे बड़ा प्रश्न यही है, कि हम सियासी और सामाजी एतबार से खाली हाथ आखिरी पायदान पर क्यों खड़े है--?
■ बहुजन मूलनिवासी समाज का जो बुद्धिजीवी वर्ग है, उनका मुस्लिम गाडा समाज के संबंध में उनका यह मानना है, कि इस समाज में पढ़े-लिखे लोग अपनी जिम्मेदारी को ना निभाते हुए चंद मौकापरस्त सियासी लोगों के हाथों की कठपुतली बनकर गुलामी का सिलसिला नस्ल दर नस्ल चलाने का काम कर रहे हैं। मुस्लिम गाडा समाज के पढ़े-लिखे लोग अपने समाज के संघर्षशील, ईमानदार, डायनामिक और बुद्धिजीवी वर्ग की उपेक्षा करके दूसरे समाज के दागी और भ्रष्ट लोगों की जय जयकार कर उनका थैला उठाने में लगे हैं। उधर मुस्लिम गाडा समाज के लोग भी ऐसे लोगों को पसंद करते हैं, जो किसी खास जाति विशेष की गुलामी मजबूती से कर रहे हो, उन्हें अपना समर्थन एकदम दे देते हैं।
■ ऐसा नहीं है कि यह मुस्लिम गाड़ा समाज किसी बड़े सियासी मुकाम पर नहीं पहुंचा, बल्कि जो लोग पहुंचे हैं वो आजाद ख्याल, संघर्षशील और बुद्धिजीवी नहीं बल्कि एक खास जाति विशेष के बंधुआ गुलाम, दब्बू किस्म के बुझदिल और गुलाम जहनियत के लोग पहुंचे हैं, जिनका अपना तो राजनीतिक और आर्थिक साम्राज्य खड़ा हो गया, मगर उनके निर्णय लेने की क्षमता और बुजदिली ने मुस्लिम गाडा समाज को बीच चौराहे पर सियासी तौर पर नंगा खड़ा कर दिया। इस मुस्लिम गाड़ा समाज में दूसरी सबसे बड़ी समस्या यह है, कि यहां हर कोई खुद को नेता मानता है। जबकि हकीकत यह है, कि वो बेचारे भारत के राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक और भौगोलिक सिस्टम से पूरी तरह से अनभिज्ञ है। उनके पास ना तो कोई विचारधारा है,ना ही उनका कोई विजन और मिशन है बल्कि वो किसी नेता की दरी बिछाने, नारे लगाने और गला फाड़ फाड़ कर अपने मौकापरस्त तथाकथित मुस्लिम नेताओं को इमाम और अल्लाह की तरफ से नामजद कयादत जैसे कुफ्र भरी बातो के अलावा और कुछ उनके पास है ही नहीं, तो फिर वो बेचारे समाज को दिशा देकर उनकी दशा कैसे बदल सकते हैं--?
■ 2022 के विधानसभा चुनाव में उन मुट्ठी भर समाज के दो दो - तीन तीन प्रत्याशी मैदान में ताल ठोक चुके, जिनके मुट्ठी भर वोट यहां हैं। उस समाज ने अपना विधायक बना लिया, जिस समाज को अगड़ी जाति के लोगों ने कभी अपने बराबर में खाट तक पर नहीं बैठने दिया और अफसोस कि जिस मुस्लिम गाडा समाज का सिटिंग विधायक हो, वो समाज और उस समाज के गुलाम, पिछलग्गू, गला फाडू तथा दरी बिछाऊ तथाकथित नेता यह निर्णय नहीं ले सके, कि वो किस पार्टी से, किस सीट पर चुनाव लड़े या फिर किसे अपना समर्थन दें--? बल्कि भीड़ का हिस्सा बनकर भेड़ा चाल और राजनीतिक कुचक्र का ऐसा शिकार बने, कि सिटिंग विधायक भी दूसरों के मंच पर नारे लगाते दिखे। इस सबका ठीकरा हम दूसरों के सिर फोड कर अपनी जिम्मेदारी से नही बच सकते, इसका जिम्मेदार कोई और नही,बल्कि मुस्लिम गाडा समाज के मौजूदा सियासतदॉ और खुद गाडा समाज है।
■ मुस्लिम गाडा बिरादरीके सियासी, समाजी और मजहबी उरूज तथा जवाल पर मैं आपको सिलसिलेवार एक एक बिंदु से मुखातिब कराते हुए आपको समस्या और समस्या के समाधान तथा सियासत में कैसे अपना खोया वकार हासिल करें,वो सब बताऊंगा। मगर इसके लिए आप लोगों के भी ताऊन की सख्त जरूरत है। यदि आपके अंदर सियासी और समाज बेदारी नहीं होगी,बल्कि आपकी/हमारी नस्लें आज के दौर की तरह यूं ही गुलामी को अपनी किस्मत समझकर फक्र महसूस करती रहेंगी और गैरों को अपना कायद, अपना इमाम तथा कुफ्र भरी बातें कहकर यह कहते रहेंगे, कि फलॉ अल्लाह रब्बुल इज्जत की तरफ से हमारी नामजद कयादत है।
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