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सभ्य समाज को डराने वाली हरकत-अतिवाद का जघन्य रूप--लेख द्वारा राजेश आर्य

 सभ्य समाज को डराने वाली हरकत-अतिवाद का जघन्य रूप

भारतीय मूल के जाने-माने लेखक सलमान रुश्दी पर न्यूयॉर्क में प्राणघातक हमला सभ्य समाज को आतंकित करने और साथ ही मजहबी अतिवाद  के भयावह खतरे को फिर से रेखांकित करने वाला है! इस हमले की विश्व समुदाय को एक सुर से निंदा करनी चाहिए! यह खेद की बात है कि ऐसा होता नहीं दिख रहा है! खुद के सीने पर लिबरल - सेक्यूलर होने का तमगा लगाने और दूसरों को उदार - अनुदार होने का प्रमाण पत्र देने वाले सलमान रुश्दी पर हमले को लेकर जिस तरह मौन है,, उस से उनके दोहरे मापदंडों का ही पता चलता है! अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए ऐसे दोहरे मापदंड न केवल घातक है,, बल्कि सलमान रुश्दी पर हमला करने वाले लेबनानी मूल के अमेरिकी नागरिक हादी मतार सरीखे अति वादियों का दुस्साहस बढ़ाने वाले भी हैं! हादी 24 साल का है! इसका अर्थ है कि उसका जन्म विवादों का कारण बनी सलमान रुश्दी की पुस्तक  सैटेनिक वर्सेस के प्रकाशन के बाद हुआ!  1988 में प्रकाशित इस पुस्तक के आलोचकों की तरह हांदी को भी उसकी विषय वस्तु के बारे में शायद ही कोई जानकारी हो! 

हादी मतार ईरान के कट्टरपंथी तत्वों से प्रभावित था! ध्यान रहे ईरान के ही सर्वोच्च मजहबी नेता अयातुल्लाह खोमेनी ने सलमान रुश्दी के खिलाफ मौत का फतवा जारी किया था! इसके पहले भारत पहला देश बना था,, जिसने द सैटेनिक वर्सेज पर पाबंदी लगाई थी! कहना कठिन है कि तत्कालीन राजीव गांधी सरकार यह पहल ने करती तो क्या परिस्थिति अलग होती..❓ जो भी हो,, इससे इंकार नहीं कि कट्टरपंथी मुल्ला- मौलवीयो  और जिहादी संगठनों ने ही हादी के मन में सलमान रुश्दी के खिलाफ जहर भरा होगा!! इसका पता इससे भी चलता है कि ईरान,, पाकिस्तान और अन्य देशों में हादी की तारीफ करने वालों की कमी नहीं! ऐसे तत्व भारत में भी दिख रहे हैं! यह एक तथ्य है कि भाजपा की निलंबित प्रवक्ता नूपुर शर्मा को जान से मारने की धमकीओं का सिलसिला थम नहीं रहा है!! इसकी भी अनदेखी नहीं की जा सकती कि महज नूपुर शर्मा का समर्थन करने के कारण कन्हैयालाल और उमेश कोहले समेत कई अन्य लोग मुस्लिम अतिवादियों का शिकार बन चुके हैं! यह अतिवाद एक तरह आंतकवाद ही है! पूरी दुनिया और यहां तक कि अमेरिका और यूरोप में भी मुस्लिम अतिवाद जिस तरह बेलगाम हो रहा है उस पर मुस्लिम देशों को न केवल चिंतित होना चाहिए,, बल्कि उसे थामने के लिए ईमानदारी से सक्रिय भी होना चाहिए,, क्योंकि हादी जैसे अतिवादियों के किए की सजा आम मुस्लिम नागरिक भुगतते हैं,, मुस्लिम जगत को उन कारणों की तह तक जाना होगा,, जिनके चलते पढ़े-लिखे मुस्लिम युवक अतिवादी बन रहे हैं।
          सभ्य समाज को डराने वाली हरकत

अगर लोकतंत्र का अस्तित्व कायम रखना है तो मत प्रकट करने की स्वतंत्रता का अस्तित्व रहना जरूरी है।अगर अमेरिका में रह रहे जाने-माने लेखक सलमान रुश्दी पर जानलेवा हमला किया जा सकता है तो इस्लाम की आलोचना करने वाले किसी भी व्यक्ति पर हमला किया जा सकता है! मैंने कभी नहीं सोचा था कि ऐसा भी होगा! वह पश्चिम में रह रहे थे और 1989 से उनको सुरक्षा मिली हुई थी! अगर अन्य उपासना पद्धतियों की आलोचना हो सकती है तो इस्लाम की क्यों नहीं..❓ इस्लाम को अपने  अवैज्ञानिक और अतार्किक बातों पर गौर करना होगा! जब तक इस्लाम में सुधार नहीं होगा, तब तक वह सिलसिला कायम रहेगा, जो सलमान रुश्दी पर हमले के रूप में नए सिरे से सामने आया है! इस्लाम के आलोचकों की हत्या सातवीं सदी में ही शुरू हो गई थी! 21वीं सदी में भी ऐसा  ही हो रहा है!

मैं सभी की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता में यकीन करता हूं! यहां तक कि अपने घोर शत्रु की भी! मैं सबके लिए लड़ता हूं! धार्मिक भावनाएं आहत होने के नाम पर भारतीय उपमहाद्वीप में उपद्रव होते रहते हैं आगजनी, तोड़फोड़, फतवा, हत्या, कुछ भी नहीं थम रहा! भावनाओं को ठेस पहुंचने का हवाला देकर कट्टरपंथी अपने मजहब के समालोचको की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छीन लेना चाहते हैं! सिर्फ इतना ही नहीं, वे उनके अस्तित्व को भी मिटाना चाहते हैं! अजमेर शरीफ के खादिम सलमान चिश्ती ने एक वीडियो पोस्ट कर कहा था कि जो नूपुर शर्मा का सिर काट कर लाएगा,, उसे मैं अपना घर इनाम में दूंगा!! इसके पहले मौहम्मद रियाज और गौस मोहम्मद ने धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के नाम पर उदयपुर के कन्हैया लाल की हत्या कर दी थी! कन्हैया के हत्यारे इतने उत्साहित थे कि उन्होंने गला काटने वाले चाकू को हवा में नचाते हुए उसका वीडियो अपलोड किया! धार्मिक भावनाओं को ठेस लगने का हवाला देकर ऐसा कोई अवैध और असंवैधानिक काम नहीं,, जो उन्मादी तत्व नहीं करते!

बांग्लादेश में तो प्राय: ही तर्कवादियों और मुक्त विचारधारा वालों पर कट्टरपंथी और सरकार,, दोनों ही टूट पड़ते हैं! जान के डर से विद्वजन चुप हो जाते हैं! बांग्लादेश में हिंदुओं को संकट में डालने के लिए मुसलमान ही हिंदुओं के पूजा मंडप में कुरान रखकर आते हैं! देश से हिंदुओं को भगाना ही उनका मकसद है!! इस जेहाद के लिए जिस चीज की जरूरत है वह है धार्मिक भावनाओं को आघात पहुंचाने की अफवाह फैलाना! उत्पात मचाने से पहले वह यह जानना जरूरी नहीं समझते कि किसने क्या कहा है..❓ जो कहां है, उसके साथ सच्चाई का कोई संबंध है या नहीं..❓ वे यह जानने की भी जरूरत नहीं समझते कि सच्चाई क्या है..❓ उनमांदियों  के कानों में अगर कोई यह खबर पहुंचा देता है कि उनके मजहब या धर्म गुरु के लेकर किसी ने कुछ कहा है,, वैसे ही वे सड़कों पर उतर पड़ते हैं!! कोई भी सवाल नहीं कर सकता,, आलोचना नहीं कर सकता,, अनुसंधान नहीं कर सकता,, यहां तक कि कोई सच भी नहीं बोल सकता! अब तो ऐतिहासिक सत्य बोलने पर भी मनाही है!! धार्मिक पुस्तकों में क्या लिखा है,, यह बताना भी मना है!

अभी तक कट्टर मुसलमान ही धार्मिक भावनाओं को आघात पहुंचाने का आरोप लगाकर हिंसा करते आ रहे थे, लेकिन अब हिंदु भी  धार्मिक भावनाओं को आघात पहुंचाने का आरोप लगाकर आपत्ति जताने लगे हैं! आदिकाल से मनुष्य के एक वर्ग ने भगवान को माना है, दूसरे ने भगवान को नहीं माना है, अथवा सभी भगवानों की समालोचना की है! इसे लेकर किसी हिंदू ने आपत्ति नहीं की, असंतोष भी नहीं जताया, लेकिन आजकल आपत्ति, आरोप, और असंतोष का अंत नहीं है! लगता है हिंदू यह सब कट्टर मुसलमानों से सीख रहे हैं! सवाल है कि किस चीज से आप खुद नफरत करते हैं, उसे क्यों ग्रहण कर रहे है।

 धार्मिक भावनाओं को ठेस लगने का आरोप लगाकर कट्टरपंथी क्या-क्या कांड कर सकते हैं,, यह सिर्फ बांग्लादेश, पाकिस्तान, और भारत, के ही नहीं,, बल्कि पूरी पूरी दुनिया के लोग अच्छी तरह से जानते हैं!! सलमान रुश्दी पर हमले के बाद वह और अच्छे से जान जाएंगे।

हकीकत यह है कि भावनाओं पर आघात किए बिना समाज को बदला नहीं जा सकता! इसके अलावा और कोई उपाय नहीं है! समाज को एक जगह पर खड़ा रखने से काम नहीं चलेगा! जो लोग समाज को जैसा है! वैसा ही रखना चाहते हैं! वे हर तरीके से उसके आगे बढ़ने में बाधा डालते हैं! यदि कोई कहता है कि वह अपनी भावनाओं को किसी तरह से  ठेस लगते नहीं देखना चाहता तो निश्चित तौर पर उसे वास्तविकता का बोध नहीं है! हमें ऐसा कोई इंसान नहीं मिलेगा , जिसकी किसी भी भावना को आज तक ठेस न पहुंची हो! लोगों के भिन्न-भिन्न मत है! हमारी भावनाओं को ठेस लगती रहती है! हम लोग इसी तरह जिंदगी जीते हैं! अगर लोकतंत्र का अस्तित्व कायम रखना है तो मत प्रकट करने की स्वतंत्रता का अस्तित्व रहना जरूरी है! धार्मिक भावनाओं के नाम पर राजनीति अब भयावह रूप धारण कर रही है।

 दुनिया में कहीं भी नारी विरोधियों की भावनाओं पर आघात के बिना नारी को अधिकार नहीं मिला है! कहीं भी मानव अधिकार विरोधी लोगों की भावनाओं पर आघात किए बिना मानवाधिकार नहीं मिले हैं! कहीं भी लोकतंत्र विरोधी लोगों की भावनाओं पर आधार किए बिना लोकतंत्र की प्रतिष्ठा नहीं हुई है! दुनिया में कहीं भी  धर्माध लोगों की भावनाओं पर आघात किए बिना विज्ञान की प्रतिष्ठा नहीं हुई है।

इस लेख के लेखक राजेश आर्य खिलाड़ी - निगम पार्षद - वाइस प्रेसिडेंट नगर पालिका रह चुके है। वर्तमान में लेखक और चिंतक एक विचारक के रूप में उभर रहे हैं। विरेन्द्र चौधरी 


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