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कयादत ने वो कौन सी जंग फतह की-? कि बाबरी मस्जिद: शहादती बरसी पर भी वो जश्न मनाते हुए ठहाके लगाते रहे

 


कयादत ने वो कौन सी जंग फतह की-? कि बाबरी मस्जिद: शहादती बरसी पर भी वो जश्न मनाते हुए ठहाके लगाते रहे

पत्रकार:इन्तखाब आजाद 90 58 405 405

सहारनपुर।देश-दुनिया बाबरी मस्जिद की शहादत, बहुजन बाबा साहब के महापरिनिर्वाण दिवस  में डूबे थे और कयादत इस तमाम गम से दूर जश्न के माहौल  में मस्त  होकर ठहाके लगाती रही।

सहारनपुर।आज 6 दिसंबर: ब्लैक डे ! यानी देश की सर्वोच्च अदालत में संघ परिवार  के अनुषांगिक संगठनों व राजनीतिक दल के जिम्मेदार नेताओं द्वारा हलफनामा देने के बावजूद संविधान की धज्जियां उड़ाते हुए बाबा साहब डॉक्टर अंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस के दिन 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद की शहादत ने संविधान और इंसानियत में विश्वास रखने वाले हर शख्स को झकझोर दिया था, तब से, अब तक संविधान समर्थक बहुजन मूलनिवासी समाज 6 दिसंबर को ब्लैक डे और संविधान विरोधी लोग शौर्य दिवस के रूप में मनाते हैं। मगर इस सबसे अलग हटकर अपने सहारनपुर में खुद को मुसलमानों की  कयादत बताने वाला शख्स अपनी पूरी टीम के साथ स्थानीय जनमंच में बाबरी मस्जिद की शहादत की बरसी की पूर्व संध्या पर रातभर  जश्ने के माहौल में उस वक्त ठहाके लगा रहा था, जब 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद की शहादत के मौके पर शहीद हुए लोग नम आंखों से बेबसी की सिसकियों के बीच अपनों को याद कर रो रहे थे।

 पूरा मामला कुछ इस तरह है कि अपने सिवा किसी दूसरे मुसलमान को सियासत में फूटी आंख ना देखने वाला एक शख्स खुद को मुसलमानों की कयादत बताकर हर एक मंच पर दूसरे को नीचा दिखाते हुए असंसदीय शब्दों का प्रयोग कर अपमानित करता है, उसने अपने अभिनंदन में एक मुशायरे का आयोजन करवाया था। मगर अफसोस कि 06 दिसंबर को बाबरी मस्जिद की शहादत की बरसी पर इस कथित कयादत को रत्ती भर भी शर्म नहीं आई, कि बाबा साहब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के महापरिनिर्वाण दिवस और  बाबरी मस्जिद की शहादत पर लाखों-करोड़ों लोगों की भावनाओं और उनके  एहसास व गम को ठेंगे पर रखकर शहर भर में दिवारों पर  पोस्टर चस्पा करवा कर रातभर  जश्न ए कयादत----- मनाते हुए ठहाके लगाता रहा। अब जिस शख्स को इतना  एहसास तक नहीं, कि देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट में संघ परिवार, भाजपा और उसके अनुषांगिक संगठनों के जिम्मेदार नेताओं ने हलफनामा देने के बावजूद बाबरी मस्जिद को संविधान के खिलाफ जाकर ढहा दिया हो और फिर आस्था के आगे अदालत ने बेबसी मे  इंसाफ नहीं बल्कि फैसला किया गया हो, तो क्या ऐसे हालात में जश्न के माहौल में सराबोर उस शख्स को, जो देर रात तक मंजर ए आम पर ठहाके लगाता रहा हो, उसे कयादत माना जा सकता है--?

इसलिए मैं कहता हूं,कि कयादत एक गंभीर शब्द है और कयादत करने वाला व्यक्ति बहुत गंभीर, मैच्योर,समझदार,जिम्मेदार, दुरंदेशी, विकट परिस्थितियों में संयम बरतने तथा समझदारी के साथ सही वक्त पर सही निर्णय लेते हुए समाज, कौम और देश हित में बोले ना, कि गलत बयान बाजी करते हुए जहरीले बयान देने, हिन्दुओं के खिलाफ मुसलमानों को एकजुट होने का आह्वान करने तथा  जनप्रतिनिधियों को सार्वजनिक मंचों पर असंसदीय भाषा का प्रयोग कर अपमानित करते हुए सिर्फ़ सनसनी पैदा करने वाला होता है। अब आप खुद फैसला करें, कि जो बाबरी मस्जिद की शहादत से उपजे हालात पर मुसलमानों के जख्मों पर ठहाके लगा रहा हो, क्या वो कयादत के लायक है--? और लोगों की समझ में यह भी नहीं आ रहा है कि  इस कथित कयादत ने कौन सी जंग फतह की है,कि  जिसका जश्न बाबरी मस्जिद की शहादत की बरसी  पर मनाया जा रहा था--?


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