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पृथक पश्चिम प्रदेश की मांग अब चिंगारी से शोला बनने को तैयार,सभी संगठन आये एक मंच पर••विधायको सांसदो का हो घेराव

 पृथक पश्चिम प्रदेश की मांग अब चिंगारी से शोला बनने को तैयार••सोशल मीडिया और आम बैठको में हो रही आंदोलन की रणनीति तैयार••सभी संगठन आये एक मंच पर••विधायको सांसदो का हो घेराव 


डी पी सिंह/अरविन्द चौहान 

सहारनपुर। पृथक पश्चिम प्रदेश की मांग अब तूल पकड़ती हुई दिखाई दे रही है। जिसका प्रमुख कारण निरंतर पश्चिम उत्तर प्रदेश की हो रही उपेक्षा को माना जा रहा है। चाहे विकास का मामला हो, राजनीतिक मामला हो, सरकारी नौकरियों का मामला हो या खेल के मैदान का मामला हो, पश्चिम प्रदेश पूरी तरह उपेक्षा का शिकार हो रहा है।

जिस तरह से सोशल मीडिया सहित अन्य माध्यमों से पश्चिम प्रदेश की मांग बढ़ती जा रही है, लगता है ये चिंगारी जल्दी ही शोले का रूप लेकर बड़े आंदोलन में परिवर्तित हो सकती है।

इस संबध में आंदोलन से जुड़े  पश्चिम प्रदेश मुक्ति मोर्चा के प्रमुख नेता विरेन्द्र चौधरी ने बताया कि उत्तर प्रदेश विभाजन की मांग आज़ादी से पहले की मांग है। सन् 1930 में लंदन में हुई गोलमेज कांफ्रेंस में हिंदू महासभा के भाई परमानन्द जी ने इस मांग को उठाया था,इसे जन कल्याण के लिए बेहद महत्वपूर्ण बताया था। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह ने भी उत्तर प्रदेश विभाजन का समर्थन किया था। चौधरी अजीत सिंह भी हरित प्रदेश की मांग को उठाते रहे हैं। आज भी विभिन्न संगठन "पश्चिम प्रदेश मुक्ति मोर्चा,उत्तम प्रदेश, पश्चिमांचल निर्माण पार्टी, पश्चिमांचल निर्माण संगठन" अपने अपने तरीके से इस आंदोलन को खड़ा करने के लिए प्रयासरत हैं। लेकिन लखनऊ में बैठे राजनेता और ब्यूरोक्रेट्स अघोषित जुगलबंदी कर पश्चिम प्रदेश को लूट का अड्डा बनाते हुए हैं। पश्चिम प्रदेश के विधायक सांसद पश्चिम प्रदेश को लेकर कभी जुबान नहीं खोलते। जबकि पश्चिम प्रदेश के लोगों को न्याय पाने के लिए 700 से 800 किमी के चक्कर लगाने पड़ते हैं। इसको लेकर पश्चिम के किसी विधायक सांसद को कोई चिंता नहीं है। उन्होंने कहा इसे लेकर मौजूदा विधायकों और सांसदों का घेराव होना चाहिए, विरोध होना चाहिए। अगर यहां की जनता और संगठन विधायकों और सांसदो का घेराव शुरू करें और विधानसभा और संसद में इन्हें आवाज उठाने को मजबूर करें तो जल्दी ही केंद्र सरकार को उत्तर प्रदेश का विभाजन करना पड़ेगा।

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