Ticker

6/recent/ticker-posts

सच के पैरों में बेड़ियां क्यों--दिव्य शक्ति अखाड़े ने मनाया माँ शाकम्भरी देवी का प्राकट्य दिवस

 दिव्य शक्ति अखाड़े ने मनाया माँ शाकम्भरी देवी का प्राकट्य दिवस•••• “सच के पैरों में बेड़ियाँ क्यों ?” पुस्तक का हुआ विमोचन••••धर्माचार्यों ने “माँ शाकुम्भरी विश्वविद्यालय” के नाम को संशोधित करने के लिए एक लाख हस्ताक्षर अभियान का किया शुभारम्भ

डान संवाददाता 

सहारनपुर। एक बार दुर्गम नाम के राक्षस दुर्गमासुर के अत्याचारों से पीडि़त देवतागण शिवालिक पर्वतमालाओं में छिप गये, भयंकर अकाल पड़ा और जल के अभाव मे वनस्पति सूख गयी, भूख और प्यास से समस्त जीव मरने लगे। जगदम्बा की आंखों से, सौ नेत्रों से जल की धारा प्रवाहित हो महान वृष्टि हुई और नदी- तालाब जल से भर गये। चतुर्भुजी माँ कमलासन पर विराजमान थी। अपने हाथों मे कमल, बाण, शाक- फल और एक तेजस्वी धनुष धारण किये हुए थी। भगवती परमेश्वरी ने अपनी शक्ति से अनेकों शाक प्रकट किये। जिनको खाकर संसार की क्षुधा शांत हुई। इसी दिव्य रूप में माँ शाकम्भरी देवी के नाम से पूजित हुई। दुर्गमासुर के साथ देवी का घोर युद्ध हुआ अंत मे दुर्गमासुर मारा गया। माँ के दायीं और भीमा एवं भ्रामरी देवी तथा बायीं और शताक्षी देवी प्रतिष्ठित है। देश मे ये एकमात्र ऐसा मंदिर है जहाँ दुर्गा के चार रूपो के दर्शन एक साथ होते है। उपरोक्त ज्ञान से परिपूर्ण वचन आवास विकास स्थित श्री हरि मंदिर में मुख्य सतिथि के रूप में पधारे परम पूज्यनीय आदरणीय महामंडलेश्वर श्री रमेशसेमवाल जी महाराज ने माँ शाकम्भरी देवी जयंती के कार्यक्रम में प्रकट किए। 

आचार्य महामंडलेश्वर महाराज परम तत्व वेत्ता संत श्री कमलकिशोर जी महाराज ने कहा कि माँ शाकुम्भरी विश्वविद्यालय (यूनिवर्सिटी) से सम्बन्धित कॉलेजों के हजारों विद्यार्थी जब डिग्री लेकर जाएंगे तो उनकी डिग्री पर शाकुंभरी विश्वविद्यालय (यूनिवर्सिटी) लिखा होगा, जो कि बिल्कुल गलत है क्योंकि शास्त्रों के अनुसार इसका शुद्ध नाम “माँ शाकम्भरी विश्वविद्यालय” होना चाहिए। सन्त कमलकिशोर ने शास्त्रों के प्रमाण देते हुए कहा कि मार्कण्डेय पुराण, दुर्गा सप्तशती, श्रीमद् देवीभागवत, मूर्ति रहस्यम, स्कंद पुराण,शिव पुराण तथा अन्य धार्मिक प्रामाणिक पुस्तकों में शुद्ध नाम शाकम्भरी माता है ना की शाकुंभरी, शाकुंबरी या शकुंबरी। 

महामंडलेश्वर श्री सुरेन्द्र शर्मा जी ने माँ शाकम्भरी देवी क्षेत्र को प्रत्यक्ष शाकेश्वर महादेव का सिद्धिदायक क्षेत्र बताते हुए कहा कि यह प्राचीनकाल से ही ऋषियों,मुनियों की तपोस्थली रहा है अतः शासन एवं प्रशासन को अतिशीघ्र संज्ञान लेकर इसका नाम शाकुंभरी से शुद्ध नाम शाकम्भरी देवी कर देना चाहिए।

श्री रामचरितमानस और महऋषि वाल्मीकि रामायण के प्रकांड विद्वान श्री कौशलेन्द्र सवामी जी ने माँ शाकम्भरी देवी के चारों नामों यथा शताक्षी,दुर्गा,भीमा और शाकम्भरी कि व्याख्या करते हुए बताया कि इनके शुद्ध उच्चारण से भाग्य, धन, बल, वैभव, ऐश्वर्य,पद, प्रतिष्ठा की प्राप्ति होती है जबकि अशुद्ध उच्चारण से व्यक्ति दरिद्रता और विनाश को प्राप्त होता है।   

 भागवताचार्य पंडित श्री अनिल कोदण्ड श्यामसखा ने कहा कि सड़कों पर लोक निर्माण विभाग द्वारा लगाए गए सूचनापट्टों पर भी शाकुंभरी ही लिखा है जो कि पूर्णरूपेण गलत है। लोक निर्माण विभाग को भी चाहिए कि वह अपनी त्रुटि का शुद्धीकरण करें। 

भागवताचार्य पण्डित श्री अरुण जी ने माँ शाकम्भरी देवी को सहारनपुर की ही नहीं वरन आसपास के सभी क्षेत्रों की कुलदेवी के रूप में विख्यात बताते हुए कहा कि इस पवित्र और सिद्ध क्षेत्र का वर्णन महाभारत में भी आया है। यह शक्तिपीठ है जहां लाखों लोग आकर अपनी मन्नत माँगते हैं और उनकी मन्नते पूरी होती हैं। 

पण्डित श्री शिवम देव वशिष्ठ ने इसे एक अत्यंत सिद्धपीठ की संज्ञा देते हुए कहा कि  मान्यताओं के अनुसार यह ऐसी शक्तिपीठ है जहां पर सती का शीश गिरा था। इसे भगवती शताक्षी का सिद्ध स्थान भी माना जाता है। 

 पण्डित श्री अमित देव वशिष्ठ ने कहा कि  देवी के नाम का उच्चारण शुद्ध रूप से होना चाहिए। अशुद्ध उच्चारण तथा लेखन से हिंदू जनमानस की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचती है।

इस अवसर पर राष्ट्रपति से सम्मानित पूर्व शिक्षक श्री चिरंजी लाल पंत जी द्वारा पिछले 27 वर्षों से माँ शाकम्भरी देवी के अशुद्ध नाम को लेकर चलाए जा रहे अभियान पर आधारित     लिखित पुस्तक “सच के पैरों में बेड़ियाँ क्यों ?” का विमोचन भी किया गया। 

कार्यक्रम का सफल एवं सुघढ संचालन श्री महेश नारंग ने किया ! कार्यक्रम को सफल बनाने में नीना धींगड़ा, चंदर चाँदना, संगीता चाँदना, एम.पी. सिंह चावला, श्रवण कुमार पांडे, अमित गुप्ता, अरविंद राणा, डॉ अमित चौहान, वीणा बजाज, वेद प्रकाश पोपली,   आदि की भूमिका मुख्य रही !

कार्यक्रम का संयोजन धीरेन्द्र सिंह राठौर ने किया !

Post a Comment

0 Comments