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हिंदू धर्म में दान मुस्लिम धर्म में जकात को महत्व दिया गया है

 


इस लेख के लेखक वरिष्ठ पत्रकार रविन्द्र चौधरी है

हिंदू धर्म शास्त्रों की मान्यता के अनुसार ब्रह्मा जी ने दान में ही मानव कल्याण का मार्ग बताया था।मुस्लिम धर्म में भी जकात यानि दान को ही  सबसे ज्यादा महत्व दिया गया है,बल्कि मुस्लिम धर्म में तो जकात की धनराशि भी निश्चित करते हुए उसको आवश्यक बना दिया गया है।मुस्लिम धर्म के अनुसार प्रत्येक मुस्लिम को अपनी अर्जित आय का 2.5 % जरूर दान करना चाहिए ये लाज़िम हैं और इसकी भी स्पष्ट व्याख्या की गई है कि जकात किसको देनी चाहिए,इस बारे में कहा गया है कि मस्जिद से पहले भूखे पड़ोसी की मदद होनी चाहिए।असल में दान यानि दीन दुखियों और गरीबों की मदद करना ईश्वरीय कार्य है क्योंकि भगवान भी सबसे पहले दीन दुखियों और गरीबों की मदद के लिए उत्सुक रहते हैं,इसलिए अगर कोई इंसान ऐसा करता है भगवान फिर इसको अपना कार्य ही मानकर उस व्यक्ति पर अपार कृपा करते हैं।क्योंकि दान या जकात के वास्ते खर्च की गई रकम आर्थिक रूप से सक्षम इंसान पर भगवान की उस कृपा का कर्ज या हक   होता है जिसकी वजह से इंसान किसी की मदद के काबिल बनता है और दौलत का मालिक बनता है।इस मामले में चूक भगवान को बर्दाश्त नहीं है,इसीलिए  भगवान सक्षम लोगों से अपने इस  कर्ज को वसूलने में कभी देर नहीं करते।जो लोग कंजूसी में किसी गरीब पीड़ित की दान रूपी मदद से परहेज करते हैं ऐसे लोग बीमारियों,चोरियो,दुर्घटनाओं और अनिश्चित आपदाओं का शिकार होते रहते हैं जिसमें उनका धन  अचानक असीमित संख्या में खर्च होता रहता है,ऐसे लोगों की जिंदगी में ये सिलसिला चलता ही रहता है,यानि इस तरह से भगवान कर्ज वसूलने का काम करते रहते हैं।इसके अलावा धर्म का पालन करने वाले दानी पुरुषो के जीवन में अगर मुसीबतें  आती भी हैं तो आसानी से चली भी जाती हैं।उनको उनके दानस्वरूप किए गए पुण्यों का फल तत्काल मिलता रहता है।यही कारण है हर मजहब में दान के महत्व को विशेष स्थान दिया गया है। यानि मजबूर आम आदमी की मदद हर मजहब में जरूरी बताई गई है।इस संदर्भ में इस्लाम धर्म में जकात की राशि को निश्चित करना और मस्जिद से पहले गरीब की मदद को प्राथमिकता देना सराहनीय कार्य है।रमजान के दिनों में इसको भी फर्ज के रूप लाज़िम किया गया है जिसको हर मुस्लिम जरूर पूरा करता है।

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