सामाजिक विद्रोह - परम्पराओं को तोड़ता एक ब्राह्मण युवक - जाने क्यूं किया विद्रोह
विरेन्द्र चौधरी
सहारनपुर/अलीगढ़। पंजाबी में एक कहावत है जिंदगी बांह फढिये औदे नाल मरिये। उर्दू में किसी शायर ने कहा है ताल्लुक जब बन जाये बोझ उन्हें तोड़ना अच्छा। हर बात अपनी अपनी स्थितियों को देखते हुए कही गयी होगी। लेकिन ब्राह्मण युवा अतुल शर्मा ने सामाजिक परम्पराओं को तोड़ते हुए बगावत की,उनका कहना है मेरे माता-पिता जिंदा है जिंदा रहेंगे।
मामला कुछ इस तरह है अतुल शर्मा के पिता की मृत्यु हो गई। हिंदू परम्पराओं के अनुसार मृतक के कपड़े बाहर फेंक दिये जाते हैं। सब जानते हैं मरने के बाद आदमी को मिट्टी कहने लगते हैं लोग। सबको जल्दी रहती है मिट्टी का जल्दी से जल्दी दाह संस्कार कर दिया जाये।
अतुल शर्मा अपने माता-पिता से बहुत प्यार करते थे। उनकी मृत्यु के बाद पंडित जी ने कहा मृतक के कपड़े बाहर रख दो। अतुल शर्मा ने पंडित जी से सवाल किया ऐसा क्यूं कह रहे हैं आप। पंडित जी बोले ये सामाजिक परम्परा है। अतुल शर्मा ने पंडित जी से सवाल करते हुए कहा मेरे पिता ने मुझे दो मकान सहारनपुर और अलीगढ़ में दिये है। कैश दिया है।जेवर दिये है। मुझे सबको छोड़ देना चाहिए,कहते हुए अपने पिता के कपड़े बाहर फेंकने से मना कर दिया।
आपको जानकारी दे दे अतुल शर्मा ने परम्पराओं को तोड़ दिया,और अपने पिता के कपड़े अपने पास रखें। अतुल शर्मा का कहना है मेरे पिता का माता का दिया जो कुछ भी है,वो उनकी धरोहर है। उसमें उनकी यादें बसी है। जब तक उनकी धरोहर मेरे पास है,वो जिंदा है,मेरे साथ है। जज़्बात हो तो ऐसे। धन्यवाद अतुल
अतुल शर्मा का लाइव वीडियो यहां देखें
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